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Harivansh Puran 29 | हरिवंश पुराण कथा : वंश परम्परा को आगे बढ़ाने वाला है

2020-03-15 5 Dailymotion

श्री हरिवंश पुराण महात्म्य<br /><br /><br /><br />मानव जीवन के लिये उपयोगी इस ग्रन्थ का पाठ करने से पूर्व महर्षि वेद व्यास भगवान श्रीकृ,ण, पाण्डुपुत्र अर्जुन एवं ज्ञान की देवी सरस्वती का ध्यान करे ।<br /><br />सनातन धर्म के रचियता महर्षि वेद व्यास जिन्होंने इस पुराण की कथा क वर्णन किया, उनके चरण कमलों में सादर वन्दन । अज्ञान के तिमिर में यह प्रकाश ज्योतिरुप सबका कल्याण करे । मैं उन गुरुदेव को नमस्कार करता हूँ । यह अखण्ड मंगलाकार चराचर विश्व जिस परमपिता परमात्मा से व्याप्त है । मैं उनके नमस्कार करता हूँ । उनका साक्षात दर्शन कराने वाले गुरुदेव को नमस्कार करता हूँ । ज्ञानियों ने हरिवंश पुराण को ब्रहृ, विष्णु, शिव का रुप कहा है । यह सनातन शब्द ब्रहमय है । इसका पारायण करने वाला मोक्ष प्राप्त करता है । जैसे सूर्योदय के होने प अन्धकार का नाश हो जाता है, इसी प्रकार हरिवंश के पठन पाठन, क्षवण से मन, वाणी और देह द्घावरा किये गए सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते है । जो फल अठारह पुराणों के क्षवण से प्राप्त होता है, उतना फल विष्णु भक्त को हरिवंस पुराण के सुनने से मिलता है, इसमें संदेह नहीं है । इसे पढ़ने और सुनने वाले स्त्री, पुरुष, बालक, विष्णुधाम प्राप्त करते है ।<br /><br />पुत्रांकाक्षी स्त्री-पुरुष इसे अवश्य सुने ।<br /><br />विधिपूर्वक हरिवंश पुराण का पठन-पाठन, सन्तान गोपाल स्तोत्र का एकवर्षीय पाठ अवश्य पुत्ररत्न प्रदान करता है ।<br /><br />जो पुरुष या स्त्री चन्द्रमा, सूर्य, गुरु, गुरुधाम, अग्नि की ओर मुख करके मलमूत्र त्याग करता है वह नपुंसक, बांझ होता है । अकारण फल-फूल तोड़ने वाला, सन्तान क्षय को प्राप्त होता है । परस्त्री गमन, बिना पत्नी बनाये क्वांरी कन्या का शीलहरण करने वाला वृद्घावस्था में घोर दुःख पाता है । व्यभिचारिणी स्त्री बुढ़ापे में गल-गलकर मरती है । निन्दनीय र घृणित कर्मी महाशोक को प्राप्त होता है । अतएव श्री हरिवंश पुराण का पारायण कर वह अपना दुख हल्का कर सकता है । हरिवंश पुराण के श्रवण, पाठने से वह दोष दूर हो सकता है ।<br /><br /><br />Harivansh Puran,हरिवंश पुराण कथा,प्रथम अध्याय,वंश परम्परा को आगे बढ़ाने वाला है,हरिवंश पुराण कथा : प्रथम अध्याय - वंश परम्परा को आगे बढ़ाने वाला है,हरिवंश पुराण कथा : प्रथम अध्याय,First Chapter,Harivansh Katha,Harivansh puran katha

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